राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के आरोप: क्या वाकई चुनाव आयोग को जवाब देना चाहिए?

By Binod Sahu

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2025 के लोकसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा सवाल उठा – क्या हमारे चुनाव निष्पक्ष हैं? कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल में चुनाव आयोग (EC) पर “वोट चोरी” के गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी हुई है, फर्जी वोटर जोड़े गए हैं और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है। उन्होंने इस मुद्दे को चुनावी अभियान का केंद्र बना दिया है, बड़ी रैलियों में इसे उठाया और जनता से समर्थन मांगा।

इस बार, राहुल गांधी की आवाज़ सिर्फ चुनावी जुमला नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी साख से जुड़ा सवाल बन गई है। इस विषय पर बात करना जरूरी है – क्या वाकई ईसी को जनता के सामने खुलकर जवाब देना चाहिए? क्या राहुल गांधी का अभियान सिर्फ राजनीति है या इसमें कोई असली चिंता छुपी है?

राहुल गांधी के आरोप क्या हैं?

राहुल गांधी का दावा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव, खासकर कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों – जैसे Bangalore Central के महादेवपुरा विधानसभा के वोटर लिस्ट में – 1,00,250 फर्जी वोटर पाए गए। कुछ वोटर ऐसे घरों में पंजीकृत हैं, जो मौजूद ही नहीं हैं; कई ‘फर्स्ट टाइम वोटर’ असल में बुजुर्ग हैं; एक ही व्यक्ति कई बूथों पर पंजीकृत है, कुछ के फोटो पहचानना नामुमकिन है, और कई नाम अलग-अलग राज्यों में भी दर्ज हैं। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से डिजिटल वोटर लिस्ट सार्वजनिक करने की मांग की, ताकि आम लोग और राजनीतिक दल खुद इसकी जांच कर सकें।

उन्होंने सोशल मीडिया और रैलियों में पांच बड़े सवाल उठाए, जिनका उनके मुताबिक, चुनाव आयोग ने सीधा जवाब नहीं दिया – जैसे एक करोड़ ‘मिस्ट्री वोटर’ कौन हैं, CCTV फुटेज क्यों नष्ट किया गया, हजारों फर्जी वोटर क्यों हैं, EC वोटर डेटा क्यों नहीं शेयर करती, और वोटर लिस्ट ऑडिट क्यों नहीं किया जाता।

चुनाव आयोग और बीजेपी की प्रतिक्रिया

भारत के चुनाव आयोग ने इन आरोपों को “गैर जिम्मेदाराना”, “भ्रामक”, और “राजनीतिक नाटक” बताया है। ईसी का कहना है कि वोटर लिस्ट काफी पारदर्शिता के साथ तैयार होती है, शिकायत दर्ज करने और अदालती अपील की प्रक्रिया पहले से मौजूद है। आयोग ने राहुल गांधी से औपचारिक तौर पर आरोपों के सबूत देने या साइन किया हुआ हलफनामा जमा करने को कहा है, नहीं तो देश से माफी मांगे।

बीजेपी ने भी राहुल गांधी पर गुस्से में जवाब दिया। प्रवक्ताओं ने उन्हें “झूठा प्रचारक” और “Goebbels का अवतार” (नाजी प्रोपेगंडिस्ट) कहा, आरोपों को सत्ता पाने की हताशा के नतीजे बताया। कई मामलों में अदालतें पहले ही कांग्रेस की शिकायतें खारिज कर चुकी हैं; इलेक्शन कमीशन कहता है कि सभी प्रक्रियाएं कानून के तहत, खुलेआम होती हैं।

पारदर्शिता की जरूरत: EC की भूमिका

राहुल गांधी की कई बातें चुनावी राजनीति के रंग में डूबी लग सकती हैं – लेकिन सवाल बड़ा है- क्या चुनाव आयोग को जनता और विपक्ष के सवालों का पारदर्शिता से, तथ्यों के साथ, जवाब नहीं देना चाहिए?

  • चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसकी प्रतिष्ठा लोकतंत्र की नींव है।
  • EC का जिम्मा है कि वह खुद को राजनीतिक पक्षधरता से ऊपर रखे और संदेह की स्थिति में तथ्यों के साथ जनता को शांत करे।
  • पारदर्शी वोटर लिस्ट, सार्वजनिक ऑडिट और शिकायतों की निष्पक्ष जांच – ये सिर्फ विपक्ष की राजनीति नहीं, बल्कि अच्छे लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं।
  • अगर आरोप निराधार हैं, तो EC बेवजह नाराज होने के बजाय डाटा और प्रक्रिया के साथ स्पष्टीकरण दे सकती है।
  • अगर कहीं गड़बड़ी प्रतीत हुई है, तो उसे सार्वजनिक करें, सुधारें और लोकतंत्र की साख बनाये रखें।

राहुल गांधी के आरोपों में चाहे कितनी भी राजनीति हो, EC का “अपनी ईमानदारी की घोषणा करना” काफी नहीं है। आज जब सोशल मीडिया, फेक न्यूज़ और जनमत बहुत तेज़ी से बनता-बिगड़ता है, EC को अपना रवैया किसी पार्टी के प्रवक्ता जैसा नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय referee का रखना चाहिए।

निष्कर्ष

राहुल गांधी के “वोट चोरी” के आरोप राजनीतिक जंग का एक तरीका हैं, जिसमें उनकी पार्टी को फ़ायदा हो सकता है। लेकिन आरोपों को इतनी आसानी से “बेस्वाद राजनीति” कह कर खारिज करना चुनाव आयोग के लिए भी ठीक नहीं। लोकतंत्र की मजबूती, जनता की आस्था, और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिए EC का जवाबदेह, पारदर्शी और तर्कपूर्ण दिखना जरूरी है।

आम जनता की दृष्टि से – अगर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी भी है तो उस पर खुलकर बातचीत होनी चाहिए; और अगर सब साफ़ है तो, EC के तथ्य जनता के भरोसे को फिर से मजबूत करते हैं।

इस पूरे मुद्दे का सार यही है – लोकतंत्र में सवाल उठाने का हक सबको है; लेकिन जवाबदेही और पारदर्शिता सिर्फ चुनाव में नहीं, हर दिन, हर संस्था में रहनी चाहिए।

विशेष टिप्पणी

भारत की चुनाव प्रक्रिया दुनिया की सबसे जटिल है। इसमें छोटे-से-छोटे सवाल को भी गंभीरता से लेना, किसी पार्टी या नेता का नहीं, पूरे देश का हक है — और चुनाव आयोग का कर्तव्य भी।

मैं बिनोद साहू एक पैशनेट हिंदी ब्लॉगर और डिजिटल मीडिया एक्सपर्ट हूं। मेरा मुख्य फोकस न्यूज़, सरकारी योजनाएं, टेक्नोलॉजी और ऐप रिव्यू से जुड़ी जानकारी को सरल और प्रभावशाली ढंग से हिंदी में लोगों तक पहुँचाना है। Any information about me content us :- newtaqat@gmail.com

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